अटलजी ने 2002 में प्रधानमंत्री रहते हुए बोगीबील पुल (Bogibeel Bridge) का निर्माण कार्य शुरू करवाया था. उनका मकसद भारत की सेना को फायदा देना और लोगों को अरुणाचल प्रदेश में कम समय में आसानी से पहुंचाने का था.
यह भी पढ़ें: 1993 धमाको के आतंकी की फांसी की सजा माफी मांगने वाले “नसीरुद्दीन शाह” को भारत में रहने से डर लगता है
भारत में अगर राजनीतिक जगत में सबसे सफल ईमानदार नेताओं का नाम सोचा जाए तो उसमें देश प्रधानमंत्री रह चुके भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी का नाम सबसे शीर्ष पर आता है. अटल बिहारी जी अपनी साफ-सुथरी छवि और विकास के लिए काम करने वाले इंसान के तौर पर जाने जाते थे. अटलजी वैसे आज दुनिया में नही हैं, लेकिन उनके द्वारा शुरू किया गया एक सपना आज 25 दिसम्बर को पूरा हो गया है.
अटलजी नें असम के डिब्रुगढ़ से अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने के लिए एक रेल-रोड पुल का निर्माण कार्य चालू करवाया था. इसका मकसद सेना को चीन बॉर्डर पर आसानी से और कम समय में पहुंचाना था, इसके साथ ही आम लोगो को भी कम समय में आसानी से असम या भारत के किसी भी हिस्से से अरुणाचल प्रदेश में आसानी से पहुंचाना था. लेकिन अटलजी की सरकार जाने के बाद कांग्रेस की सरकार रही और इस पुल का काम एक दम ठप्प हो गया कांग्रेस सरकार नें इस प्रोजेक्ट पर अच्छे से ध्यान नही दिया, फिर 2014 में भाजपा की मोदी सरकार आयी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नें इस पुल पर खास ध्यान देते हुए इस पुल के निर्माण कार्य को तेजी प्रदान की और इसे 25 दिसंबर 2018 को देशवासियों के लिए खोल दिया.
इस रेल-रोड पुल के निर्माण कार्य में देरी के कारण इसकी लागत में 85 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई. शुरुआत में इसकी लागत 3230.02 करोड़ रुपये थी, जो बढ़कर 5,960 करोड़ रुपये हो गई। इस बीच पुल की लंबाई भी पहले की निर्धारित 4.31 किलोमीटर से बढ़ाकर 4.94 किलोमीटर कर दी गयी निर्माण के बाद यह भारत का सबसे लंबा और एशिया का दूसरा सबसे लंबा रेल-रोड पुल बनकर तैयार हो गया इस से होने वाले फायदे हम आपको बताने जा रहे हैं.