सामने वाले के इरादे चाहे जितने भी खतरनाक हों, लेकिन जब किसी इंसान के ऊपर भगवान का हाथ हो तो उसका कोई बाल भी बांका नही कर सकता, ठीक ऐसा ही हुआ इस जवान के साथ.
भारत आतंकवाद से त्रस्त मुल्कों मेसे एक है. आतंकवाद भारत की जनता को चुन-चुन कर मौत देता आया है. भारत के लोगों को बचाने के लिए भारत की सेनाएं,पुलिस और अर्धसैनिक बल के जवान अपनी शहीदी देते आये हैं. सबसे ज्यादा आतंकी घटनाएं भारत के कश्मीर में होती हैं, क्योंकि वहां पाकिस्तान की सीमा लगती है और पाकिस्तान अपने आतंकवादियों को भारत में भेजता रहता है. कश्मीर में सेना जब आतंकियों का एनकाउंटर करने जाती है, तब वहां के लोग उनको बचाने के लिए पत्थर मारते हैं, और आतंकवादियों की मदद भी करते हैं.

हाल ही में पुलवामा में हुए हमले, जिसमें पाकिस्तान के इस्लामिक संगठन “जैश-ए-मोहम्मद” का हाथ था, इस हमले में एक जवान बच निकला, उसके हिस्से में मौत नही थी.
वो कहते हैं ना कि “जिंदगी और मौत की डोर ऊपर वाले के हाथ में होती है, वो इस घटना के बाद यह साबित भी हो गया. उस सिपाही का नाम है “सुरेंद्र यादव” जो पुलवामा धमाके में मौत को चकमा दे गया. सुरेंद्र यादव ठीक उसी बस में सवार था जिस बस में धमका हुआ था. एक बस में करीब 40 यात्री होते हैं और उन 40 यात्रियों में सुरेंद्र यादव भी शामिल था.

सिपाही सुरेंद्र यादव नें मीडिया से बात करते हुए बताया कि वो उसी बाद में सवार था. सेना का काफिला करीब 190 किलोमीटर दूर था जम्मू से, जो काजीकुंडा में रुका. इसी दौरान सुरेंद्र यादव के एक दोस्त नें सुरेंद्र को अपनी बस में बुला लिया. सुरेंद्र उस बस को छोडकर अपने दोस्त के साथ जाकर बैठ गए. यह बस हादसे वाली बस से करीब 10 बस पीछे थी. हादसे वाली बस में भी सुरेंद्र के 3 दोस्त और थे. इसके बाद कश्मीर के अवंतीपुरा नजदीक यह आतंकवादी हमला हो गया और देश के 40 जवान शहीद हो गए, लेकिन सुरेंद्र की किस्मत में जिंदगी लिखी थी वो बच गया.

इस हमले के बाद जिस बस में जितने भी जवान शहीद हुए थे, उसकी सूची तैयार की जा रही थी. इस सूची में सुरेंद्र यादव का नाम भी शामिल था. सुरेंद्र के परिवार वालों को भी आतंकवादी हमले की सूचना दे दी गई, और उनको सुरेंद्र के शरीर के पहचान के लिए बुलाया गया. लेकिन सुरेंद्र का शरीर इसमें नही था, इसके बाद सुरेंद्र के जिंदा होने का पता लगा. सुरेंद्र इस हादसे के बाद लगातार अपने दोस्तों के लिए रोते रहे. दोस्तों के समझाने के बाद सुरेंद्र अपनी भावनाओं पर काबू पा सके और सेना को ओर मजबूती से अपनी सेवाएं देने के लिए आगे बढ़े.
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